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एक पुस्तक जिसके 2018 में पहली बार प्रकाशित होने के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था के तीन सर्वोच्च पदों (आरबीआई गवर्नर, मुख्य आर्थिक सलाहकार और नीति आयोग के उपाध्यक्ष) पर एक भी आयातित अर्थशास्त्री नियुक्त नहीं किए गए।
वैश्विक अर्थव्यवस्था की विवेचना करते हुए आसानी से समझ में आने वाले 110 चार्ट और टेबल के साथ ।
“कभी-कभी, एक बाहरी व्यक्ति क्षेत्रके विशेषज्ञों से अधिक बेहतर ढंग से आँकड़ों का विश्लेषण कर सकता है ।”
— डॉ अरविन्द गुप्ता
विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) के तत्कालीन निदेशक और भूतपूर्व उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (पुस्तक के प्रथम संस्करण के आलोक में मार्च 2018 में डॉ सुस्मित कुमार द्वारा दिए गए वार्ता के दौरान परिचय कराते हुए)
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, जब हिटलर का लगभग पूरे यूरोप पर कब्जा था, और यूरोप की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बर्बाद हो चुकी थी और उन्हें अपने पुनर्निर्माण के लिए अमेरिका से बहुत अधिक सहायता की आवश्यकता थी, और जब अधिकतर दूसरे देश उपनिवेशवाद के अधीन थे, तब अमेरिका ने अपनी मुद्रा को वैश्विक मुद्रा बना दिया । जब भी अमेरिका को अपने व्यापार घाटा या बजट घाटा को वित्तपोषित करना होता है, तो वह बस अपनी मुद्रा छाप लेता है । कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री ऐलन एच मेल्टज़र के अनुसार: हम (अमेरिका) कागज के टुकड़ों, जिनको हम बहुत तेजी से छाप सकते हैं, के बदले सस्ते उत्पाद प्राप्त करते हैं ।
अमेरिकी डॉलर एक पॉन्ज़ी योजना है । चीन और अन्य देशों से अपने आयातों के लिए अमेरिका मात्र अपनी मुद्रा “छाप” लेता है और बदले में निर्यात करने वाले देशों, जिसमें भारत भी शामिल है, को अमेरिका में डॉलर का निवेश करना पड़ता है; या तो अमेरिकी राजकोषीय बॉन्ड में या अमेरिकी शेयर बाजार में । भारत अमेरिका की तरह अपनी मुद्रा छाप कर अपने बजट और व्यापार घाटे को वित्तपोषित नहीं कर सकता ।
अमेरिका के अतिरिक्त, तीन दूसरी आर्थिक महाशक्तियों (जर्मनी, जापान और चीन) के पास तीन दशकों से अधिक समय से व्यापार अधिशेष (trade surplus) रहा है, जबकि भारत में तीन दशकों के उदारीकरण के बाद भी एक भी वर्ष व्यापार अधिशेष नहीं रहा – इस स्थिति के पीछे हैं “आयातित” अमेरिकी अर्थशास्त्री, जो विनाशकारी “रीगनॉमिक्स” लागू करवाते हैं और उसी का गुणगान करते हैं । भारत कभी भी आर्थिक महाशक्ति तब तक नहीं बन सकता जब तक उसके पास चीन की तरह अधिकाधिक मात्रा में विदेशी मुद्रा जमा नहीं हो जाता है । इसके अलावा भारत को अनेक आयामों में त्वरित तौर पर आत्म-निर्भर होने की आवश्यकता है । अमेरिका में 1980 के दशक से चली आ रही “रीगनॉमिक्स” नीतियों ने अमेरिका को दिवालिया कर दिया है और उसके लगभग राष्ट्रीय निर्माण एवं सेवा क्षेत्र की नौकरियों को दूसरे देश में भेज दिया है ।
अमेरिकी अर्थशास्त्रियों, प्रबंधन गुरुओं और वॉल स्ट्रीट ने चीन के रूप में एक भस्मासुर खड़ा कर दिया है और अमेरिका को चीन के हाथों बेच दिया है । 1990 के दशक से चीन ने लगातार व्यापार अधिशेष बनाया है और $4 ट्रिलियन ($4 लाख करोड़) विदेशी मुद्रा जमा कर लिया है, और अमेरिकी डॉलर के स्थान पर चीन का युआन वैश्विक मुद्रा बनने की कगार पर है । अमेरिकी पूँजीवाद तेजी से ‘1991 सोवियत संघ के विखंडन’ वाले पल की तरफ अग्रसर है जिसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1930 के दशक से भी बड़ी आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ेगा ।
ISBN 13 | 9798885751766 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Publishing Year | 2024 |
Total Pages | 288 |
Edition | 2nd |
Publishers | Garuda Prakashan |
Category | Economics |
Weight | 300.00 g |
Dimension | 15.50 x 23.00 x 2.00 |
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एक पुस्तक जिसके 2018 में पहली बार प्रकाशित होने के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था के तीन सर्वोच्च पदों (आरबीआई गवर्नर, मुख्य आर्थिक सलाहकार और नीति आयोग के उपाध्यक्ष) पर एक भी आयातित अर्थशास्त्री नियुक्त नहीं किए गए।
वैश्विक अर्थव्यवस्था की विवेचना करते हुए आसानी से समझ में आने वाले 110 चार्ट और टेबल के साथ ।
“कभी-कभी, एक बाहरी व्यक्ति क्षेत्रके विशेषज्ञों से अधिक बेहतर ढंग से आँकड़ों का विश्लेषण कर सकता है ।”
— डॉ अरविन्द गुप्ता
विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) के तत्कालीन निदेशक और भूतपूर्व उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (पुस्तक के प्रथम संस्करण के आलोक में मार्च 2018 में डॉ सुस्मित कुमार द्वारा दिए गए वार्ता के दौरान परिचय कराते हुए)
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, जब हिटलर का लगभग पूरे यूरोप पर कब्जा था, और यूरोप की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बर्बाद हो चुकी थी और उन्हें अपने पुनर्निर्माण के लिए अमेरिका से बहुत अधिक सहायता की आवश्यकता थी, और जब अधिकतर दूसरे देश उपनिवेशवाद के अधीन थे, तब अमेरिका ने अपनी मुद्रा को वैश्विक मुद्रा बना दिया । जब भी अमेरिका को अपने व्यापार घाटा या बजट घाटा को वित्तपोषित करना होता है, तो वह बस अपनी मुद्रा छाप लेता है । कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री ऐलन एच मेल्टज़र के अनुसार: हम (अमेरिका) कागज के टुकड़ों, जिनको हम बहुत तेजी से छाप सकते हैं, के बदले सस्ते उत्पाद प्राप्त करते हैं ।
अमेरिकी डॉलर एक पॉन्ज़ी योजना है । चीन और अन्य देशों से अपने आयातों के लिए अमेरिका मात्र अपनी मुद्रा “छाप” लेता है और बदले में निर्यात करने वाले देशों, जिसमें भारत भी शामिल है, को अमेरिका में डॉलर का निवेश करना पड़ता है; या तो अमेरिकी राजकोषीय बॉन्ड में या अमेरिकी शेयर बाजार में । भारत अमेरिका की तरह अपनी मुद्रा छाप कर अपने बजट और व्यापार घाटे को वित्तपोषित नहीं कर सकता ।
अमेरिका के अतिरिक्त, तीन दूसरी आर्थिक महाशक्तियों (जर्मनी, जापान और चीन) के पास तीन दशकों से अधिक समय से व्यापार अधिशेष (trade surplus) रहा है, जबकि भारत में तीन दशकों के उदारीकरण के बाद भी एक भी वर्ष व्यापार अधिशेष नहीं रहा – इस स्थिति के पीछे हैं “आयातित” अमेरिकी अर्थशास्त्री, जो विनाशकारी “रीगनॉमिक्स” लागू करवाते हैं और उसी का गुणगान करते हैं । भारत कभी भी आर्थिक महाशक्ति तब तक नहीं बन सकता जब तक उसके पास चीन की तरह अधिकाधिक मात्रा में विदेशी मुद्रा जमा नहीं हो जाता है । इसके अलावा भारत को अनेक आयामों में त्वरित तौर पर आत्म-निर्भर होने की आवश्यकता है । अमेरिका में 1980 के दशक से चली आ रही “रीगनॉमिक्स” नीतियों ने अमेरिका को दिवालिया कर दिया है और उसके लगभग राष्ट्रीय निर्माण एवं सेवा क्षेत्र की नौकरियों को दूसरे देश में भेज दिया है ।
अमेरिकी अर्थशास्त्रियों, प्रबंधन गुरुओं और वॉल स्ट्रीट ने चीन के रूप में एक भस्मासुर खड़ा कर दिया है और अमेरिका को चीन के हाथों बेच दिया है । 1990 के दशक से चीन ने लगातार व्यापार अधिशेष बनाया है और $4 ट्रिलियन ($4 लाख करोड़) विदेशी मुद्रा जमा कर लिया है, और अमेरिकी डॉलर के स्थान पर चीन का युआन वैश्विक मुद्रा बनने की कगार पर है । अमेरिकी पूँजीवाद तेजी से ‘1991 सोवियत संघ के विखंडन’ वाले पल की तरफ अग्रसर है जिसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1930 के दशक से भी बड़ी आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ेगा ।
ISBN 13 | 9798885751766 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Publishing Year | 2024 |
Total Pages | 288 |
Edition | 2nd |
Publishers | Garuda Prakashan |
Category | Economics |
Weight | 300.00 g |
Dimension | 15.50 x 23.00 x 2.00 |
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$ 17.58
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