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ABOUT THE BOOK:-
ये पुस्तक लम्बे समय से राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित मोहन दास करमचंद गाँधी का विद्वत्तापूर्ण पुनर्मूल्यांकन करते हुए उनके इर्द-गिर्द गढ़े गए कथ्य पर प्रश्न-चिन्ह खड़े करती है । आम अवधारणा के विपरीत, हमने पाया कि गाँधी सक्रिय रूप से ब्रिटिश हितों का ध्यान रखते थे, और उनके क्रियाकलापों ने स्वतन्त्रता के विद्रोही आंदोलनों को दबाया,और संभवतः भारत की स्वतन्त्रता को विलम्बित किया ।
एक और बात जिस पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया,वो है गाँधी द्वारा कट्टरपंथी इस्लाम को मुख्यधारा में लाया जाना । 1920 में मात्र काँग्रेस पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए उन्होंने खिलाफत आंदोलन, जो तुर्की में इस्लामिक खलीफा को पुनर्स्थापित करने हेतु छोटा सा आंदोलन था, को मुख्यधारा में ला दिया । पुस्तक बताती है कि कैसे गाँधी ने मद्रास से बड़ी सँख्या में लाए गए मुसलमान प्रतिनिधियों के बल पर हिन्दू नेताओं के जबरदस्त विरोध के बीच विजय पाई ।
गाँधी के इस कदम से न सिर्फ मुसलमानों का नेतृत्व कट्टरवादी तत्वों के हाथ में चला गया, वरन इससे अंततः भारत का विभाजन हुआ दूसरी तरफ,1922,में जब गाँधी ने चौरी-चौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया,तब खिलाफती उग्र हो गए और भारत में साम्प्रदायिक दंगों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई ।
ब्रिटिश अभिलेखागार के पहली बार गैर-वर्गीकृत किए गए अभिलेखों के आधार पर लेखक ने ये स्थापित किया है कि गाँधी ने 1942 भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया क्योंकि उन्हें लगता था कि जापान और जर्मनी द्वितीय विश्वयुद्ध जीत जाएंगे और वे भारत को जापानी साम्राज्य का उपनिवेश बनाना चाहते थे ।
पुस्तक गाँधी की तानाशाही प्रवृत्तियों को भी दर्शाती है—उन्होंने काँग्रेस के भीतर अपने चहेते लोगों को स्थापित करने के लिए लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं का हनन किया,जिसमें वो प्रक्रिया भी शामिल है जिसके तहत भारत के भावी प्रधानमंत्री का चुनाव होना था ।
गाँधी का पुनर्मूल्यांकन: कैसे उन्होंने स्वतंत्रता को विलम्बित किया और कट्टरपंथी इस्लाम को मुख्यधारा में ला दिया अभिलेखागारों से भारत की स्वतन्त्रता की कहानी को भी सामने लाती है, जिससे ये स्पष्ट है कि ब्रिटिश सुभाष चंद्र बोस और उनके आजाद हिन्द फौज के कारण ब्रिटिश भारतीय सेना में विद्रोह की सम्भावना की वजह से भारत छोड़ने पर मजबूर हुए,न कि गाँधी के तथाकथित आंदोलनों के कारण।
अनुक्रम:-
भाग एक
गाँधी के पहले का इतिहास:
ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले का भारत 51
ब्रिटेन द्वारा भारत की लूट और बर्बादी 56
1857 भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 79
1885 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 84
1907 में काँग्रेस का ‘गरम दल’ और ‘नरम दल’ में विभाजन 92
भाग दो
गाँधी का उद्भव:
दक्षिण अफ्रीकी गाँधी – साम्राज्य की पालकी ढोने वाला 99
गाँधी का हिन्द स्वराज – मध्ययुगीन व्यवस्था का पुनरावर्तन 103
1916-18 होम रूल लीग आन्दोलन और प्रथम विश्वयुद्ध 112
गाँधी: जनता का ‘संत’ चला स्वतंत्रता दिलाने 117
1919 की गाँधी की हड़ताल, जलियाँवाला बाग
हत्याकांड और उनकी प्रतिक्रिया 121
भाग तीन
गाँधी का कट्टरपंथी इस्लाम को:
भारत की मुख्यधारा में ले आना
जिन्ना, काँग्रेस के उच्च नेताओं का खिलाफत और गाँधी के असहयोग आंदोलन का विरोध 129
खिलाफत आन्दोलन का उपयोग कर गाँधी का काँग्रेस पर कब्जा; संविधान बदल कर तानाशाह बनना 134
1920 असहयोग आन्दोलन और एक वर्ष में स्वराज – एक असफलता 147
गाँधी ने एक वर्ष में स्वराज के दावे पर करोड़ों रुपए इकठ्ठा किए 155
गाँधी, खिलाफत आन्दोलन और 1921 मालाबार दंगे 161
भाग चार
एक नकली संन्यास:
1923 में वरिष्ठ काँग्रेस नेताओं का विद्रोह और स्वराज पार्टी की स्थापना 177
असहयोग आन्दोलन की विफलता के बाद
संन्यास – फिर भी कांग्रेस पार्टी के तानाशाह 182
कुछ पता नहीं अंतिम लक्ष्य, यानी स्वतन्त्रता, कैसे प्राप्त करना है 188
गाँधी का खिलाफत को अपनाना और साम्प्रदायिक दंगों में बेतहाशा वृद्धि 192
1920 के दशक के अंत में राजनीति में वापसी 196
काँग्रेस के वामपंथियों द्वारा हाशिए पर धकेले जाने से बचने के लिए गाँधी ने 1929 में नेहरु को ‘अपनाया’ 198
1930 सविनय अवज्ञा आन्दोलन और गोल मेज सम्मेलन 204
खिलाफत आन्दोलन का उग्र इस्लाम को बढ़ावा और अंततः भारत विभाजन का कारण बनना 209
1930 के दशक के मध्य में सक्रिय राजनीति से फिर सन्यास, गाँधी फिर भी काँग्रेस के तानाशाह 221
भाग पाँच
बोस का उद्भव और द्वितीय विश्वयुद्ध:
बोस जब काँग्रेस अध्यक्ष बने (1938-39) 227
द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण 238
द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने के बाद गाँधी का
कोई भी आन्दोलन न छेड़ने का निर्णय 251
1940 में गाँधी की काँग्रेस द्वारा दिखावे के लिए व्यक्तिगत सत्याग्रह 255
1942 भारत छोड़ो आन्दोलन पर गाँधी का मूल मसौदा:
चूँकि जर्मनी और जापान द्वितीय विश्वयुद्ध जीत जाएँगे, तो भारत को बिना संघर्ष जापान के हाथों में सौंप दें 259
1942 भारत छोड़ो आन्दोलन की वजह – आजाद हिन्द फौज और जापानियों का भारत के दरवाजे पर खटखटाना 265
1942 भारत छोड़ो आन्दोलन का कुछ ही महीनों में दबा दिया गया जाना 275
गाँधी और 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन पर जयप्रकाश नारायण के विचार 282
सुभाष चन्द्र बोस, आजाद हिन्द सरकार और आईएनए 289
आईएनए पर दिल्ली के लाल किले में चला मुकदमा और उससे उपजे देश में हिंसक प्रदर्शन 309
भारत के मंत्री लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस को 9 अक्टूबर, 1945 को लिखा वाइसरॉय वैवेल का पत्र 331
मध्य प्रान्त और बेरार के गवर्नर सर एच ट्वाइनम का वाइसरॉय वैवेल को लिखा 25 अक्टूबर, 1945 का पत्र 333
गाँधी की इच्छा के विरुद्ध नेहरु और पटेल द्वारा आईएनए के प्रयोग से बड़े पैमाने पर हिंसा की संभावना 336
वाइसरॉय वैवेल द्वारा भारत के मंत्री लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस को लिखा 6 नवम्बर, 1945 का पत्र 341
भारत की स्थिति पर सेना प्रमुख द्वारा ब्रिटिश कैबिनेट में
1 दिसंबर, 1945 को प्रस्तुत किया गया अभिलेख 345
भाग छः
भारत कैसे स्वतंत्र हुआ और गाँधी ब्रिटिश सेफ्टी वाल्व बने रहे:
आईएनए, भारतीय सेना में विद्रोह और बड़े
पैमाने पर हिंसक आंदोलन का खतरा 353
लाल किला आईएनए मुकदमे के फैसले के बाद 12 फरवरी, 1946 को जनरल औचिन्लेक का भारतीय सेना कमांडरों को लिखा पत्र 369
1946 का नौसैनिक विद्रोह 373
2 मार्च, 1946 को झाँसी में नेहरु द्वारा दिए गए
भाषण का द स्टेट्समैन में छपा अंश 380
आई सी एस का भारतीयकरण, आर्थिक कारण, अमेरिकी दबाव और 1945 के ब्रिटिश चुनाव में लेबर पार्टी की विजय 383
1949 में आए पूर्व अमेरिकी सांसद के सुभाष चन्द्र बोस के बारे में विचार 388
गाँधी के अलोकतांत्रिक क्रिया-कलाप और उसके दुष्परिणाम 391
सुभाष चन्द्र बोस के बिना भारत तब तक स्वतंत्र
नहीं हो पाता, जब तक गाँधी जीवित रहते 398
भारत 1930 के दशक में स्वतंत्र हो सकता था,
यदि गाँधी हाशिए पर चले जाते 402
भारतीय राष्ट्रीय सेना की द्वितीय विश्वयुद्ध के तुरंत बाद की सार्वजनिक छवि 408
बोस: ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने वाले 411
प्रस्तावना:
मेरी 2016 की पुस्तक आनंद मार्ग: विक्टिम ऑफ कम्युनिस्ट काँस्पिरेसी ड्यूरिंग 1969-77 के लिए इन्टरनेट पर शोध के दौरान मुझे ब्रिटिश नेशनल आर्काइव (राष्ट्रीय अभिलेखागार) की वेबसाइट पर दो अवर्गीकृत प्रपत्र (दस्तावेज) मिले जिनमें महात्मा गाँधी द्वारा 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन को आरम्भ करने के पीछे के कारणों की चर्चा की गई थी । वो (गाँधी) इस बात से डरे हुए थे कि जापानी सेना द्वारा बनाई गई और समर्थित भारतीय राष्ट्रीय सेना (आजाद हिन्द फौज), भारत को ब्रिटेन से आजाद करा लेगी । ब्रिटिश गुप्तचर एजेंसियों के अनुसार 1942 के मध्य तक गाँधी का मानना था कि जर्मनी और जापान द्वितीय विश्वयुद्ध में विजयी होंगे, जो उन्हें भारतीय इतिहास के मात्र एक ‘फुटनोट’ बना कर रख देती क्योंकि तब तक उन्होंने अपनी काँग्रेस पार्टी में स्वतंत्रता को लेकर किसी भी विमर्श को हमेशा शान्त कराया था । यहाँ तक कि उनके 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन का मसौदा जापान के पक्ष में था । इससे पहले उन्होंने दो आन्दोलन आरम्भ किया था, किन्तु उनमें से कोई भी ब्रिटेन से स्वतंत्रता के लिए नहीं थे । इन दो अवर्गीकृत प्रपत्रों में से एक में कहा गया – “...इस बात के बढ़ते हुए संकेत मिल रहे हैं कि गाँधी सरकार को शर्मसार न करने की अपनी पुरानी नीति को छोड़ रहे हैं और काँग्रेस का नेतृत्व ब्रिटेन को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से एक बड़े आन्दोलन की तैयारी कर रहे हैं ।”
अपनी 2008 की पुस्तक द मॉडर्नाइज़ेशन ऑफ इस्लाम एंड द क्रिएशन ऑफ मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर में मैंने लिखा था कि वस्तुतः द्वितीय विश्वयुद्ध ने साम्राज्यवादी शक्तियों को अपने उपनिवेशों को स्वतंत्र करने पर मजबूर किया था, क्योंकि युद्ध के बाद उन्होंने मात्र भारत ही नहीं वरन लगभग बाकी सारे उपनिवेशों को अगले एक दशक के भीतर स्वतंत्र कर दिया । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन ने न सिर्फ भारत को, बल्कि अन्य कई उपनिवेशों को स्वतंत्रता दे दी—जिसमें 1946 में जॉर्डन, 1947 में फिलिस्तीन, 1948 में श्री लंका, 1948 में म्यांमार, 1952 में मिस्र और 1957 में मलेशिया शामिल थे । इसी कारण से फ्रांस को 1949 में लाओस, 1953 में कम्बोडिया को स्वतंत्रता देनी पड़ी; और 1954 में विएतनाम को छोड़ना पड़ा । नीदरलैंड्स ने भी डच ईस्ट इंडीज़ कहे जाने वाले उपनिवेशों, मुख्यतः इंडोनेशिया, को 1949 में छोड़ दिया । पिछले वर्ष के मध्य में मैंने अपने पूर्व के कार्यों को विस्तार देने के उद्देश्य से गाँधी और भारतीय स्वतन्त्रता पर लिखने का विचार किया और ये पुस्तक उसी का परिणाम है ।
मैं इस अवसर पर श्री ट्रोंड ओवरलैंड का इस पुस्तक के सम्पादन के लिए आभार प्रकट करता हूँ; साथ ही ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राज एन. सिंह जी की इस पुस्तक को लिखने में प्रदान की गई सहायता का आभार प्रकट करता हूँ । मैं मेरी पीएचडी के सलाहकार (advisor), पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के स्वर्गीय प्रोफेसर स्टीवर्ट के. कर्ट्ज़, जिन्होंने मुझे शोध करना और शोध पत्र/ लेख लिखना सिखाया, का सदैव आभारी रहूँगा । मैं अपनी माँ का धन्यवाद करता हूँ, जिन्होंने मुझे अनगिनत प्रकार से प्रेरणा दी, जिसे शब्दों में मैं कभी नहीं कह सकता।
ISBN 13 | 9798885751773 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Total Pages | 448 |
Edition | First |
Publishers | Garuda Prakashan |
Category | Indian History History |
Weight | 460.00 g |
Dimension | 15.50 x 23.00 x 3.50 |
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ABOUT THE BOOK:-
ये पुस्तक लम्बे समय से राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित मोहन दास करमचंद गाँधी का विद्वत्तापूर्ण पुनर्मूल्यांकन करते हुए उनके इर्द-गिर्द गढ़े गए कथ्य पर प्रश्न-चिन्ह खड़े करती है । आम अवधारणा के विपरीत, हमने पाया कि गाँधी सक्रिय रूप से ब्रिटिश हितों का ध्यान रखते थे, और उनके क्रियाकलापों ने स्वतन्त्रता के विद्रोही आंदोलनों को दबाया,और संभवतः भारत की स्वतन्त्रता को विलम्बित किया ।
एक और बात जिस पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया,वो है गाँधी द्वारा कट्टरपंथी इस्लाम को मुख्यधारा में लाया जाना । 1920 में मात्र काँग्रेस पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए उन्होंने खिलाफत आंदोलन, जो तुर्की में इस्लामिक खलीफा को पुनर्स्थापित करने हेतु छोटा सा आंदोलन था, को मुख्यधारा में ला दिया । पुस्तक बताती है कि कैसे गाँधी ने मद्रास से बड़ी सँख्या में लाए गए मुसलमान प्रतिनिधियों के बल पर हिन्दू नेताओं के जबरदस्त विरोध के बीच विजय पाई ।
गाँधी के इस कदम से न सिर्फ मुसलमानों का नेतृत्व कट्टरवादी तत्वों के हाथ में चला गया, वरन इससे अंततः भारत का विभाजन हुआ दूसरी तरफ,1922,में जब गाँधी ने चौरी-चौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया,तब खिलाफती उग्र हो गए और भारत में साम्प्रदायिक दंगों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई ।
ब्रिटिश अभिलेखागार के पहली बार गैर-वर्गीकृत किए गए अभिलेखों के आधार पर लेखक ने ये स्थापित किया है कि गाँधी ने 1942 भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया क्योंकि उन्हें लगता था कि जापान और जर्मनी द्वितीय विश्वयुद्ध जीत जाएंगे और वे भारत को जापानी साम्राज्य का उपनिवेश बनाना चाहते थे ।
पुस्तक गाँधी की तानाशाही प्रवृत्तियों को भी दर्शाती है—उन्होंने काँग्रेस के भीतर अपने चहेते लोगों को स्थापित करने के लिए लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं का हनन किया,जिसमें वो प्रक्रिया भी शामिल है जिसके तहत भारत के भावी प्रधानमंत्री का चुनाव होना था ।
गाँधी का पुनर्मूल्यांकन: कैसे उन्होंने स्वतंत्रता को विलम्बित किया और कट्टरपंथी इस्लाम को मुख्यधारा में ला दिया अभिलेखागारों से भारत की स्वतन्त्रता की कहानी को भी सामने लाती है, जिससे ये स्पष्ट है कि ब्रिटिश सुभाष चंद्र बोस और उनके आजाद हिन्द फौज के कारण ब्रिटिश भारतीय सेना में विद्रोह की सम्भावना की वजह से भारत छोड़ने पर मजबूर हुए,न कि गाँधी के तथाकथित आंदोलनों के कारण।
अनुक्रम:-
भाग एक
गाँधी के पहले का इतिहास:
ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले का भारत 51
ब्रिटेन द्वारा भारत की लूट और बर्बादी 56
1857 भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 79
1885 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 84
1907 में काँग्रेस का ‘गरम दल’ और ‘नरम दल’ में विभाजन 92
भाग दो
गाँधी का उद्भव:
दक्षिण अफ्रीकी गाँधी – साम्राज्य की पालकी ढोने वाला 99
गाँधी का हिन्द स्वराज – मध्ययुगीन व्यवस्था का पुनरावर्तन 103
1916-18 होम रूल लीग आन्दोलन और प्रथम विश्वयुद्ध 112
गाँधी: जनता का ‘संत’ चला स्वतंत्रता दिलाने 117
1919 की गाँधी की हड़ताल, जलियाँवाला बाग
हत्याकांड और उनकी प्रतिक्रिया 121
भाग तीन
गाँधी का कट्टरपंथी इस्लाम को:
भारत की मुख्यधारा में ले आना
जिन्ना, काँग्रेस के उच्च नेताओं का खिलाफत और गाँधी के असहयोग आंदोलन का विरोध 129
खिलाफत आन्दोलन का उपयोग कर गाँधी का काँग्रेस पर कब्जा; संविधान बदल कर तानाशाह बनना 134
1920 असहयोग आन्दोलन और एक वर्ष में स्वराज – एक असफलता 147
गाँधी ने एक वर्ष में स्वराज के दावे पर करोड़ों रुपए इकठ्ठा किए 155
गाँधी, खिलाफत आन्दोलन और 1921 मालाबार दंगे 161
भाग चार
एक नकली संन्यास:
1923 में वरिष्ठ काँग्रेस नेताओं का विद्रोह और स्वराज पार्टी की स्थापना 177
असहयोग आन्दोलन की विफलता के बाद
संन्यास – फिर भी कांग्रेस पार्टी के तानाशाह 182
कुछ पता नहीं अंतिम लक्ष्य, यानी स्वतन्त्रता, कैसे प्राप्त करना है 188
गाँधी का खिलाफत को अपनाना और साम्प्रदायिक दंगों में बेतहाशा वृद्धि 192
1920 के दशक के अंत में राजनीति में वापसी 196
काँग्रेस के वामपंथियों द्वारा हाशिए पर धकेले जाने से बचने के लिए गाँधी ने 1929 में नेहरु को ‘अपनाया’ 198
1930 सविनय अवज्ञा आन्दोलन और गोल मेज सम्मेलन 204
खिलाफत आन्दोलन का उग्र इस्लाम को बढ़ावा और अंततः भारत विभाजन का कारण बनना 209
1930 के दशक के मध्य में सक्रिय राजनीति से फिर सन्यास, गाँधी फिर भी काँग्रेस के तानाशाह 221
भाग पाँच
बोस का उद्भव और द्वितीय विश्वयुद्ध:
बोस जब काँग्रेस अध्यक्ष बने (1938-39) 227
द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण 238
द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने के बाद गाँधी का
कोई भी आन्दोलन न छेड़ने का निर्णय 251
1940 में गाँधी की काँग्रेस द्वारा दिखावे के लिए व्यक्तिगत सत्याग्रह 255
1942 भारत छोड़ो आन्दोलन पर गाँधी का मूल मसौदा:
चूँकि जर्मनी और जापान द्वितीय विश्वयुद्ध जीत जाएँगे, तो भारत को बिना संघर्ष जापान के हाथों में सौंप दें 259
1942 भारत छोड़ो आन्दोलन की वजह – आजाद हिन्द फौज और जापानियों का भारत के दरवाजे पर खटखटाना 265
1942 भारत छोड़ो आन्दोलन का कुछ ही महीनों में दबा दिया गया जाना 275
गाँधी और 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन पर जयप्रकाश नारायण के विचार 282
सुभाष चन्द्र बोस, आजाद हिन्द सरकार और आईएनए 289
आईएनए पर दिल्ली के लाल किले में चला मुकदमा और उससे उपजे देश में हिंसक प्रदर्शन 309
भारत के मंत्री लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस को 9 अक्टूबर, 1945 को लिखा वाइसरॉय वैवेल का पत्र 331
मध्य प्रान्त और बेरार के गवर्नर सर एच ट्वाइनम का वाइसरॉय वैवेल को लिखा 25 अक्टूबर, 1945 का पत्र 333
गाँधी की इच्छा के विरुद्ध नेहरु और पटेल द्वारा आईएनए के प्रयोग से बड़े पैमाने पर हिंसा की संभावना 336
वाइसरॉय वैवेल द्वारा भारत के मंत्री लॉर्ड पेथिक-लॉरेंस को लिखा 6 नवम्बर, 1945 का पत्र 341
भारत की स्थिति पर सेना प्रमुख द्वारा ब्रिटिश कैबिनेट में
1 दिसंबर, 1945 को प्रस्तुत किया गया अभिलेख 345
भाग छः
भारत कैसे स्वतंत्र हुआ और गाँधी ब्रिटिश सेफ्टी वाल्व बने रहे:
आईएनए, भारतीय सेना में विद्रोह और बड़े
पैमाने पर हिंसक आंदोलन का खतरा 353
लाल किला आईएनए मुकदमे के फैसले के बाद 12 फरवरी, 1946 को जनरल औचिन्लेक का भारतीय सेना कमांडरों को लिखा पत्र 369
1946 का नौसैनिक विद्रोह 373
2 मार्च, 1946 को झाँसी में नेहरु द्वारा दिए गए
भाषण का द स्टेट्समैन में छपा अंश 380
आई सी एस का भारतीयकरण, आर्थिक कारण, अमेरिकी दबाव और 1945 के ब्रिटिश चुनाव में लेबर पार्टी की विजय 383
1949 में आए पूर्व अमेरिकी सांसद के सुभाष चन्द्र बोस के बारे में विचार 388
गाँधी के अलोकतांत्रिक क्रिया-कलाप और उसके दुष्परिणाम 391
सुभाष चन्द्र बोस के बिना भारत तब तक स्वतंत्र
नहीं हो पाता, जब तक गाँधी जीवित रहते 398
भारत 1930 के दशक में स्वतंत्र हो सकता था,
यदि गाँधी हाशिए पर चले जाते 402
भारतीय राष्ट्रीय सेना की द्वितीय विश्वयुद्ध के तुरंत बाद की सार्वजनिक छवि 408
बोस: ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने वाले 411
प्रस्तावना:
मेरी 2016 की पुस्तक आनंद मार्ग: विक्टिम ऑफ कम्युनिस्ट काँस्पिरेसी ड्यूरिंग 1969-77 के लिए इन्टरनेट पर शोध के दौरान मुझे ब्रिटिश नेशनल आर्काइव (राष्ट्रीय अभिलेखागार) की वेबसाइट पर दो अवर्गीकृत प्रपत्र (दस्तावेज) मिले जिनमें महात्मा गाँधी द्वारा 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन को आरम्भ करने के पीछे के कारणों की चर्चा की गई थी । वो (गाँधी) इस बात से डरे हुए थे कि जापानी सेना द्वारा बनाई गई और समर्थित भारतीय राष्ट्रीय सेना (आजाद हिन्द फौज), भारत को ब्रिटेन से आजाद करा लेगी । ब्रिटिश गुप्तचर एजेंसियों के अनुसार 1942 के मध्य तक गाँधी का मानना था कि जर्मनी और जापान द्वितीय विश्वयुद्ध में विजयी होंगे, जो उन्हें भारतीय इतिहास के मात्र एक ‘फुटनोट’ बना कर रख देती क्योंकि तब तक उन्होंने अपनी काँग्रेस पार्टी में स्वतंत्रता को लेकर किसी भी विमर्श को हमेशा शान्त कराया था । यहाँ तक कि उनके 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन का मसौदा जापान के पक्ष में था । इससे पहले उन्होंने दो आन्दोलन आरम्भ किया था, किन्तु उनमें से कोई भी ब्रिटेन से स्वतंत्रता के लिए नहीं थे । इन दो अवर्गीकृत प्रपत्रों में से एक में कहा गया – “...इस बात के बढ़ते हुए संकेत मिल रहे हैं कि गाँधी सरकार को शर्मसार न करने की अपनी पुरानी नीति को छोड़ रहे हैं और काँग्रेस का नेतृत्व ब्रिटेन को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से एक बड़े आन्दोलन की तैयारी कर रहे हैं ।”
अपनी 2008 की पुस्तक द मॉडर्नाइज़ेशन ऑफ इस्लाम एंड द क्रिएशन ऑफ मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर में मैंने लिखा था कि वस्तुतः द्वितीय विश्वयुद्ध ने साम्राज्यवादी शक्तियों को अपने उपनिवेशों को स्वतंत्र करने पर मजबूर किया था, क्योंकि युद्ध के बाद उन्होंने मात्र भारत ही नहीं वरन लगभग बाकी सारे उपनिवेशों को अगले एक दशक के भीतर स्वतंत्र कर दिया । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन ने न सिर्फ भारत को, बल्कि अन्य कई उपनिवेशों को स्वतंत्रता दे दी—जिसमें 1946 में जॉर्डन, 1947 में फिलिस्तीन, 1948 में श्री लंका, 1948 में म्यांमार, 1952 में मिस्र और 1957 में मलेशिया शामिल थे । इसी कारण से फ्रांस को 1949 में लाओस, 1953 में कम्बोडिया को स्वतंत्रता देनी पड़ी; और 1954 में विएतनाम को छोड़ना पड़ा । नीदरलैंड्स ने भी डच ईस्ट इंडीज़ कहे जाने वाले उपनिवेशों, मुख्यतः इंडोनेशिया, को 1949 में छोड़ दिया । पिछले वर्ष के मध्य में मैंने अपने पूर्व के कार्यों को विस्तार देने के उद्देश्य से गाँधी और भारतीय स्वतन्त्रता पर लिखने का विचार किया और ये पुस्तक उसी का परिणाम है ।
मैं इस अवसर पर श्री ट्रोंड ओवरलैंड का इस पुस्तक के सम्पादन के लिए आभार प्रकट करता हूँ; साथ ही ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राज एन. सिंह जी की इस पुस्तक को लिखने में प्रदान की गई सहायता का आभार प्रकट करता हूँ । मैं मेरी पीएचडी के सलाहकार (advisor), पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के स्वर्गीय प्रोफेसर स्टीवर्ट के. कर्ट्ज़, जिन्होंने मुझे शोध करना और शोध पत्र/ लेख लिखना सिखाया, का सदैव आभारी रहूँगा । मैं अपनी माँ का धन्यवाद करता हूँ, जिन्होंने मुझे अनगिनत प्रकार से प्रेरणा दी, जिसे शब्दों में मैं कभी नहीं कह सकता।
ISBN 13 | 9798885751773 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Total Pages | 448 |
Edition | First |
Publishers | Garuda Prakashan |
Category | Indian History History |
Weight | 460.00 g |
Dimension | 15.50 x 23.00 x 3.50 |
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Garuda International
$ 22.64
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