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Hindu Rashtra ka Bhavishya: Kya Desh Islamic State Banne kee Disha Mein Badh Raha Hai?
Hindu Rashtra ka Bhavishya
Product Description

-:ABOUT THE BOOK:-

विश्वव में सबसे पहले, सर्वोत्कृष्ट, और सर्वमान्य हिन्दूसभ्यता का अभ्युदय हिन्दू देश भारत में हुआ था। दक्षिण पूर्व एशिया से लेकर दक्षिण अमेरिका तक भारत की प्राचीन हिन्दू सभ्यता के वास्तुनिर्माण के दृढ़ और स्थूल तथा विस्तृत आकार आज भी विद्यमान है। "कोलम्बस ने सर्वप्रथम अमेरिका को खोजा था" इस मान्यता को प्राचीन हिन्दू सभ्यता के वास्तुअवशेषों ने उपहासास्पद बना दिया है!

अभी अभी अरब भूमि मे उत्खनन से प्राप्त साढे आठ हजार पुराने हिन्दू मन्दिर के अवशेष बताते हैं कि प्राचीन हिन्दू सभ्यता सभी ज्ञात सभ्यताओं से बहुत पुरानी और बहुत समृद्ध रही है। भारत के सर्वकला शिक्षक विश्व विद्यालयों में विश्व के अनेक देशों से विविध शिक्षा प्राप्त करने को शिक्षार्थी यहाँ आते थे।

कम्बोडिया में अन्गकोरवाट के हिन्दू मन्दिर, इन्डोनेशिया में बोरोबुदुर के बौद्ध मन्दिर तथा कम्बोडिया के ही बेयोन मन्दिर हिन्दू सभ्यता के प्रसार की कहानी कह रहे हैं।

दक्षिण पूर्व एशिया के अनेक देशों में श्रीराम, गणैश और गरुड़ के भव्य प्राचीन मन्दिर अद्यापि विद्यमान हैं। दक्षिण अमेरिका के पेरू मेमाचू पिच्चू म में उडीसा के कोणार्क मन्दिर की प्रतिकृति जैसा सूर्य मन्दिर (Templo del sol) दक्षिण अमेरिका के बोलिविया में ट्वान्कू (300 –1000 AD) हिन्दू निर्माण का प्रसार बताते है। दक्षिण अमेरिका के बोलीविया में ही टिआहुआनाको मोनोलिथिक (200 –1000 AD) में हिन्दू सभ्यता के शिरोत्राण का प्रदर्शन कर रहे हैं।

ग्वाटेमाला में मन्कीटैम्पल के नाम से विख्यात एक अतिप्राचीन मन्दिर है जिसे विद्वान हनुमान मन्दिर मान रहे हैं, परन्तु वास्तव में यह मन्दिर बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज का है जिसका विवरण रामायण में अहिरावण के प्रसंग में आया है।

अफ्रीका में जिम्बाब्वे में 11 से 15 शताब्दी की सोपस्टोन कार्विंग हिन्दूकला का सर्वत्र व्याप्त अस्तित्व को प्रकट कर रही हैं।

योरोप में तथा मिडिल ईस्ट एशिया में भी हिन्दू सभ्यता के चिन्ह अधुनापि विद्यमान है।

गोबेकली टेपे( तुर्की 10 से 8 शताब्दी बीसी) हिन्दू वास्तुकला के अवशेष शेष हैं।

मोहेन जोदड़ौ की अति प्राचीन इन्डसवैली की हिन्दू सभ्यता के अवशेष (2500- 1900 BC) सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता अवशेष माने गये हैं।

विदेशों में यह अति प्राचीन सभ्यता विस्तार भारत के चक्रवर्ती सम्राटो के विजय चिन्ह हैं।

अब बडे सोच की बात है कि जिस हिन्दू सभ्यता की डुगडुगी विदेशों में जोर जोर से बज रही है और उसके आध्यात्मिक व दार्शनिक विज्ञान का इस्कॉन जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायै विश्व के सभी देशों में गान कर रहीं हैं, उस विश्व व्यापी सभ्यता के जनक हिन्दू का इस समय अपना कोई देश नहीं है! कोई हिन्दू राष्ट्र नहीं है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में होरहे भयानक अत्याचारों के विरोध में बोलने वालाआज कोई नहीं है!

क्या हिन्दू राष्ट्र कभी स्थापित हो सकेगा, और हो भी गया तो सत्ता के भूखे भेडिये उसे कम्प्रोमाइज़ करके कहीं इस्लामिक राष्ट्र न बना दैंगे इसका क्या भरोसा है??

यही हिन्दूराष्ट्रवाद इस पुस्तक की विषयवस्तु है।

Product Details
ISBN 13 9798885752244
Book Language Hindi
Binding Paperback
Publishing Year 2025
Total Pages 204
Edition First
Publishers Garuda Prakashan  
Category Politics   Indian History   History   Indian Politics  
Weight 220.00 g
Dimension 13.00 x 23.00 x 2.20

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विश्वव में सबसे पहले, सर्वोत्कृष्ट, और सर्वमान्य हिन्दूसभ्यता का अभ्युदय हिन्दू देश भारत में हुआ था। दक्षिण पूर्व एशिया से लेकर दक्षिण अमेरिका तक भारत की प्राचीन हिन्दू सभ्यता के वास्तुनिर्माण के दृढ़ और स्थूल तथा विस्तृत आकार आज भी विद्यमान है। "कोलम्बस ने सर्वप्रथम अमेरिका को खोजा था" इस मान्यता को प्राचीन हिन्दू सभ्यता के वास्तुअवशेषों ने उपहासास्पद बना दिया है!

अभी अभी अरब भूमि मे उत्खनन से प्राप्त साढे आठ हजार पुराने हिन्दू मन्दिर के अवशेष बताते हैं कि प्राचीन हिन्दू सभ्यता सभी ज्ञात सभ्यताओं से बहुत पुरानी और बहुत समृद्ध रही है। भारत के सर्वकला शिक्षक विश्व विद्यालयों में विश्व के अनेक देशों से विविध शिक्षा प्राप्त करने को शिक्षार्थी यहाँ आते थे।

कम्बोडिया में अन्गकोरवाट के हिन्दू मन्दिर, इन्डोनेशिया में बोरोबुदुर के बौद्ध मन्दिर तथा कम्बोडिया के ही बेयोन मन्दिर हिन्दू सभ्यता के प्रसार की कहानी कह रहे हैं।

दक्षिण पूर्व एशिया के अनेक देशों में श्रीराम, गणैश और गरुड़ के भव्य प्राचीन मन्दिर अद्यापि विद्यमान हैं। दक्षिण अमेरिका के पेरू मेमाचू पिच्चू म में उडीसा के कोणार्क मन्दिर की प्रतिकृति जैसा सूर्य मन्दिर (Templo del sol) दक्षिण अमेरिका के बोलिविया में ट्वान्कू (300 –1000 AD) हिन्दू निर्माण का प्रसार बताते है। दक्षिण अमेरिका के बोलीविया में ही टिआहुआनाको मोनोलिथिक (200 –1000 AD) में हिन्दू सभ्यता के शिरोत्राण का प्रदर्शन कर रहे हैं।

ग्वाटेमाला में मन्कीटैम्पल के नाम से विख्यात एक अतिप्राचीन मन्दिर है जिसे विद्वान हनुमान मन्दिर मान रहे हैं, परन्तु वास्तव में यह मन्दिर बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज का है जिसका विवरण रामायण में अहिरावण के प्रसंग में आया है।

अफ्रीका में जिम्बाब्वे में 11 से 15 शताब्दी की सोपस्टोन कार्विंग हिन्दूकला का सर्वत्र व्याप्त अस्तित्व को प्रकट कर रही हैं।

योरोप में तथा मिडिल ईस्ट एशिया में भी हिन्दू सभ्यता के चिन्ह अधुनापि विद्यमान है।

गोबेकली टेपे( तुर्की 10 से 8 शताब्दी बीसी) हिन्दू वास्तुकला के अवशेष शेष हैं।

मोहेन जोदड़ौ की अति प्राचीन इन्डसवैली की हिन्दू सभ्यता के अवशेष (2500- 1900 BC) सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता अवशेष माने गये हैं।

विदेशों में यह अति प्राचीन सभ्यता विस्तार भारत के चक्रवर्ती सम्राटो के विजय चिन्ह हैं।

अब बडे सोच की बात है कि जिस हिन्दू सभ्यता की डुगडुगी विदेशों में जोर जोर से बज रही है और उसके आध्यात्मिक व दार्शनिक विज्ञान का इस्कॉन जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायै विश्व के सभी देशों में गान कर रहीं हैं, उस विश्व व्यापी सभ्यता के जनक हिन्दू का इस समय अपना कोई देश नहीं है! कोई हिन्दू राष्ट्र नहीं है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में होरहे भयानक अत्याचारों के विरोध में बोलने वालाआज कोई नहीं है!

क्या हिन्दू राष्ट्र कभी स्थापित हो सकेगा, और हो भी गया तो सत्ता के भूखे भेडिये उसे कम्प्रोमाइज़ करके कहीं इस्लामिक राष्ट्र न बना दैंगे इसका क्या भरोसा है??

यही हिन्दूराष्ट्रवाद इस पुस्तक की विषयवस्तु है।

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ISBN 13 9798885752244
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Total Pages 204
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