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-:ABOUT THE BOOK:-
सिर्फ एक कहानी नहीं है यह, बल्कि मुकम्मल कहानियों का गुलदस्ता है। ये कहानियाँ 1960 से 1980 के दशकों का दायरा खुद में समेटे हुए हैं। इसमें एक कहानी है, धारवाड़, कर्नाटक के शास्त्रीय गायक ‘बुवा’ पंडित शारदा प्रसाद रामदुर्गी की। उन्होंने 1960 के दशक में, जब न तकनीक उन्नत थी और न मूलभूत सुविधाएँ, एक ऐसी घड़ी बनाने का सपना देखा, जो 24 घंटे की अवधि में हर घंटे अलग-अलग राग गाती हो। उन्होंने 10 सालों की मेहनत से ऐसी घड़ी बना भी दी। इसके बनाने के पीछे उनका मकसद था कि देश के हर घर की दीवार पर एक ऐसी घड़ी टँग जाए और वह लोगों के मन-मस्तिष्क में सकारात्मकता भरती रहे। समाज की उद्विग्नता को शान्त करती रहे। लेकिन वही घड़ी उनके निधन का कारण बन जाती है। कैसे?
दूसरी कहानी है डॉक्टर मनोहर की, जो न्यूरोलॉजिस्ट हैं। वे संगीत में प्रयुक्त ‘राग-समय पद्धति’ के जरिए बीमार लोगों का इलाज करते हैं। इसमें बुवा की गायकी और उनकी ‘गाने वाली घड़ी’ मनोहर के काम आती है। लेकिन इस तजुर्बे के चक्कर में उनके माथे पर बड़ा कलंक लग जाता है। कैसे?
तीसरी कहानी है आनन्द की। वह बुवा का शिष्य है। उसकी माँ का निधन हो चुका है। पिता कस्बे में ताड़ी की दुकान चलाते हैं। संगीत में बेटे की रुचि देखकर उन्होंने उसे बुवा के गुरुकुल में भेज दिया है। लेकिन ‘बुवा’ ने उसे हुक्म दिया है कि पहले कुछ बरस शास्त्रीय संगीत को समझो। फिर सीखना-सिखाना होगा और इसके बाद गाने का अवसर मिलेगा। तब तक गुरुकुल में सेवा-टहल करना है। आनन्द आज्ञाकारी शिष्य है। गुरुजी का हर आदेश मानता है। लेकिन साथ ही, जब बुवा अन्य शिष्यों को सिखाते हैं, तो बड़े ध्यान से उनके पूरे संगीत को आत्मसात् करता है। दिन में जब भी मौका मिलता है, गुरुकुल से दूर जंगल में संगीत का अभ्यास भी करता है। अलबत्ता, किसी के सामने गाता कभी नहीं, क्योंकि गुरुजी का आदेश नहीं है। लेकिन तभी कुछ ऐसा होता है कि आनन्द को मजबूरन, गाना पड़ता है। और उसके गाते ही चमत्कार होता है- ‘बुवा’ का पुनर्जन्म! कैसे?
जवाब जानने के लिए पढ़िए… ‘प्रहर’, कहानी- आठ प्रहर का राग संगीत गाने वाली घड़ी की
ABOUT THE TRANSLATOR:
नीलेश द्विवेदी लगभग दो दशक तक रेडियो, प्रिन्ट, टीवी और वेब की दुनिया में लिखते-लिखाते रहे। इसके बाद वर्ष 2016 से पूर्णकालिक तौर पर पुस्तकों के अनुवाद और लेखन के कार्य में रत हैं। इस दौरान 15 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद, सम्पादन, आदि कर चुके हैं। ‘आरके नारायण की लोकप्रिय कहानियाँ’, ‘द हवाला एजेन्ट’, ‘आओ जानें मन को’, ‘मायावी अम्बा और शैतान’, ‘प्रहर’, आदि उनकी कुछ प्रमुख अनूदित पुस्तकें हैं। ‘द्रौपदी मुर्मू : बदलते भारत का प्रतिबिम्ब’, जैसी तीन अनूदित पुस्तकें प्रकाशित होने वाली हैं।
वे अब तक ‘वाल्मीकि रामायण’ से जुड़ी एक उच्चस्तरीय यूट्यूब सीरीज का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद भी कर चुके हैं। ‘द हवाला एजेन्ट’ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए तैयार है। इसके साथ ही न्यूज18हिन्दी पर ‘दास्तान-गो’ के नाम से लगभग 200 से अधिक रोचक लेखों की एक लम्बी श्रृंखला भी लिख चुके हैं।
संगीत, फिल्म, राजनीति, इतिहास, जीवनी, उपन्यास, आदि पर उनका लेखन और अनुवाद कार्य व्यापक रूप से सराहा गया है। वे ‘Apni Digital Diary’ के नाम से एक वेब पोर्टल भी संचालित करते हैं। यह भारत का सम्भवत: पहला ‘व्यूज़ प्लेटफॉर्म’ है। इस पर स्तरीय और वैचारिक लेख प्रकाशित किए जाते हैं। साथ ही, रोचक पुस्तकों की श्रृंखलाएँ भी समय-समय पर प्रकाशित होती रहती हैं। वे संगीत के विद्यार्थी भी हैं। उन्होंने जाने-माने बाँसुरीवादक श्री अभय फगरे और श्री हिमांशु नन्दा से बाँसुरीवादन की शिक्षा ली है।
ISBN 13 | 9798885752329 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Publishing Year | 2025 |
Total Pages | 188 |
Edition | First |
Translated by | Neelesh Dwivedi |
Publishers | Garuda Prakashan |
Category | Indian Writing Literature & Fiction |
Weight | 200.00 g |
Dimension | 13.00 x 21.00 x 2.00 |
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-:ABOUT THE BOOK:-
सिर्फ एक कहानी नहीं है यह, बल्कि मुकम्मल कहानियों का गुलदस्ता है। ये कहानियाँ 1960 से 1980 के दशकों का दायरा खुद में समेटे हुए हैं। इसमें एक कहानी है, धारवाड़, कर्नाटक के शास्त्रीय गायक ‘बुवा’ पंडित शारदा प्रसाद रामदुर्गी की। उन्होंने 1960 के दशक में, जब न तकनीक उन्नत थी और न मूलभूत सुविधाएँ, एक ऐसी घड़ी बनाने का सपना देखा, जो 24 घंटे की अवधि में हर घंटे अलग-अलग राग गाती हो। उन्होंने 10 सालों की मेहनत से ऐसी घड़ी बना भी दी। इसके बनाने के पीछे उनका मकसद था कि देश के हर घर की दीवार पर एक ऐसी घड़ी टँग जाए और वह लोगों के मन-मस्तिष्क में सकारात्मकता भरती रहे। समाज की उद्विग्नता को शान्त करती रहे। लेकिन वही घड़ी उनके निधन का कारण बन जाती है। कैसे?
दूसरी कहानी है डॉक्टर मनोहर की, जो न्यूरोलॉजिस्ट हैं। वे संगीत में प्रयुक्त ‘राग-समय पद्धति’ के जरिए बीमार लोगों का इलाज करते हैं। इसमें बुवा की गायकी और उनकी ‘गाने वाली घड़ी’ मनोहर के काम आती है। लेकिन इस तजुर्बे के चक्कर में उनके माथे पर बड़ा कलंक लग जाता है। कैसे?
तीसरी कहानी है आनन्द की। वह बुवा का शिष्य है। उसकी माँ का निधन हो चुका है। पिता कस्बे में ताड़ी की दुकान चलाते हैं। संगीत में बेटे की रुचि देखकर उन्होंने उसे बुवा के गुरुकुल में भेज दिया है। लेकिन ‘बुवा’ ने उसे हुक्म दिया है कि पहले कुछ बरस शास्त्रीय संगीत को समझो। फिर सीखना-सिखाना होगा और इसके बाद गाने का अवसर मिलेगा। तब तक गुरुकुल में सेवा-टहल करना है। आनन्द आज्ञाकारी शिष्य है। गुरुजी का हर आदेश मानता है। लेकिन साथ ही, जब बुवा अन्य शिष्यों को सिखाते हैं, तो बड़े ध्यान से उनके पूरे संगीत को आत्मसात् करता है। दिन में जब भी मौका मिलता है, गुरुकुल से दूर जंगल में संगीत का अभ्यास भी करता है। अलबत्ता, किसी के सामने गाता कभी नहीं, क्योंकि गुरुजी का आदेश नहीं है। लेकिन तभी कुछ ऐसा होता है कि आनन्द को मजबूरन, गाना पड़ता है। और उसके गाते ही चमत्कार होता है- ‘बुवा’ का पुनर्जन्म! कैसे?
जवाब जानने के लिए पढ़िए… ‘प्रहर’, कहानी- आठ प्रहर का राग संगीत गाने वाली घड़ी की
ABOUT THE TRANSLATOR:
नीलेश द्विवेदी लगभग दो दशक तक रेडियो, प्रिन्ट, टीवी और वेब की दुनिया में लिखते-लिखाते रहे। इसके बाद वर्ष 2016 से पूर्णकालिक तौर पर पुस्तकों के अनुवाद और लेखन के कार्य में रत हैं। इस दौरान 15 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद, सम्पादन, आदि कर चुके हैं। ‘आरके नारायण की लोकप्रिय कहानियाँ’, ‘द हवाला एजेन्ट’, ‘आओ जानें मन को’, ‘मायावी अम्बा और शैतान’, ‘प्रहर’, आदि उनकी कुछ प्रमुख अनूदित पुस्तकें हैं। ‘द्रौपदी मुर्मू : बदलते भारत का प्रतिबिम्ब’, जैसी तीन अनूदित पुस्तकें प्रकाशित होने वाली हैं।
वे अब तक ‘वाल्मीकि रामायण’ से जुड़ी एक उच्चस्तरीय यूट्यूब सीरीज का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद भी कर चुके हैं। ‘द हवाला एजेन्ट’ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए तैयार है। इसके साथ ही न्यूज18हिन्दी पर ‘दास्तान-गो’ के नाम से लगभग 200 से अधिक रोचक लेखों की एक लम्बी श्रृंखला भी लिख चुके हैं।
संगीत, फिल्म, राजनीति, इतिहास, जीवनी, उपन्यास, आदि पर उनका लेखन और अनुवाद कार्य व्यापक रूप से सराहा गया है। वे ‘Apni Digital Diary’ के नाम से एक वेब पोर्टल भी संचालित करते हैं। यह भारत का सम्भवत: पहला ‘व्यूज़ प्लेटफॉर्म’ है। इस पर स्तरीय और वैचारिक लेख प्रकाशित किए जाते हैं। साथ ही, रोचक पुस्तकों की श्रृंखलाएँ भी समय-समय पर प्रकाशित होती रहती हैं। वे संगीत के विद्यार्थी भी हैं। उन्होंने जाने-माने बाँसुरीवादक श्री अभय फगरे और श्री हिमांशु नन्दा से बाँसुरीवादन की शिक्षा ली है।
ISBN 13 | 9798885752329 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Publishing Year | 2025 |
Total Pages | 188 |
Edition | First |
Translated by | Neelesh Dwivedi |
Publishers | Garuda Prakashan |
Category | Indian Writing Literature & Fiction |
Weight | 200.00 g |
Dimension | 13.00 x 21.00 x 2.00 |
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Garuda International
$ 15.00
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