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Dhwant (ध्वान्त)
Dhwant (ध्वान्त)
Product Description

"स्फुलिंग" के बाद अब “ध्वान्त”!
विचित्र,किंतु सही है !
धुआं ही धुआं, घुटन, निराशा और टूटन!
'सकल परिवेश हमारा एक नकार है' --- धुआंधार है!
तो भी चिनग है सही!
"स्फुलिंग" की तरह “ध्वान्त” के विषय में भी यह प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं। यहां उनकी मीमांसा अभीष्ट नहीं। तो भी इतना कह देना उचित है कि इनमें अधिकांश में परस्पर मूलतः कोई विरोध नहीं।
हां, भेद अवश्य है। वस्तुतः यह सापेक्षिक प्रक्रियाएं हैं, एक दूसरे से संबंध एक प्रकार की अभिवृत्तियां, एक ही विषय अथवा प्रश्न के भिन्न रूप कोण वा दृष्टियां !
भेद वैयक्तिक प्रकृति व प्रवृत्ति के फल स्वरुप है। अन्यथा यह सब अपने लक्ष्य के अनुस्यूत, अनुप्राणित हैं।
और लक्ष्य थोड़े बहुत अंतर से एक ही होता है। रास्ते अवश्य अलग अलग रह सकते हैं। और वही वास्तव में आज प्रतिमान जैसे बन गये हैं ! विरोध यदि कहीं हैं तो हमारे पुर्वापरग्रह के कारण ही है।
आवश्यकता केवल हमारे नितांत खुले, मुक्त,उदात्त और प्रबुद्ध होने की है। इन अभिव्यक्तियों में यह सभी आयाम अल्पाधिक रूप में आश्लिष्ट है, क्योंकि मेरा दृष्टिकोण मूलतः स्वानुभूति सिक्त है।

Product Details
Book Language Hindi
Binding Hardcover
Publishing Year 1966
Publishers Manav Prakashan  
Category Indian Poetry  
Weight 250.00 g
Dimension 14.00 x 22.00 x 2.00

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"स्फुलिंग" के बाद अब “ध्वान्त”!
विचित्र,किंतु सही है !
धुआं ही धुआं, घुटन, निराशा और टूटन!
'सकल परिवेश हमारा एक नकार है' --- धुआंधार है!
तो भी चिनग है सही!
"स्फुलिंग" की तरह “ध्वान्त” के विषय में भी यह प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं। यहां उनकी मीमांसा अभीष्ट नहीं। तो भी इतना कह देना उचित है कि इनमें अधिकांश में परस्पर मूलतः कोई विरोध नहीं।
हां, भेद अवश्य है। वस्तुतः यह सापेक्षिक प्रक्रियाएं हैं, एक दूसरे से संबंध एक प्रकार की अभिवृत्तियां, एक ही विषय अथवा प्रश्न के भिन्न रूप कोण वा दृष्टियां !
भेद वैयक्तिक प्रकृति व प्रवृत्ति के फल स्वरुप है। अन्यथा यह सब अपने लक्ष्य के अनुस्यूत, अनुप्राणित हैं।
और लक्ष्य थोड़े बहुत अंतर से एक ही होता है। रास्ते अवश्य अलग अलग रह सकते हैं। और वही वास्तव में आज प्रतिमान जैसे बन गये हैं ! विरोध यदि कहीं हैं तो हमारे पुर्वापरग्रह के कारण ही है।
आवश्यकता केवल हमारे नितांत खुले, मुक्त,उदात्त और प्रबुद्ध होने की है। इन अभिव्यक्तियों में यह सभी आयाम अल्पाधिक रूप में आश्लिष्ट है, क्योंकि मेरा दृष्टिकोण मूलतः स्वानुभूति सिक्त है।

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